कुछत कुछ कौर
खाली नी बैठ हाथों में हाती धौर ।
सोचणी क्या छे दुनि में किले आई
चीर दे सांकु धरती को
इनु मेहनत कौर ।
कोस न दियो दयपतौं हो
खुटा त टेक खणु त हो
टुटकी मुड़ीं खणु त कौर ।
गीचक आज तक केगे नी चली
बिन लालु माटु केरी केथे न मीली
बाधं मुंड फुंड सौर ।
खुद पै विश्वास तु कर
भोल अपणु पैंछु नी धर
बुसल्यौं छुयौं में टक नी धौर ।
केदार सिंह।
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