कुछत कौर

कुछत कुछ कौर
खाली नी बैठ हाथों में हाती धौर ।

सोचणी क्या छे दुनि में किले आई
चीर दे सांकु धरती को
इनु मेहनत कौर ।

कोस न दियो दयपतौं हो
खुटा त टेक खणु त हो
टुटकी मुड़ीं खणु त कौर ।

गीचक आज तक केगे नी चली
बिन लालु माटु केरी केथे न मीली
बाधं मुंड फुंड सौर ।

खुद पै विश्वास तु कर
भोल अपणु पैंछु नी धर
बुसल्यौं छुयौं में टक नी धौर ।

केदार सिंह।






0 Comments