आश नी रैई सांस नी रैई
इकुलाश सी लगी रैई
अब विश्वास भी नी रैई
कब आला बौणी की।
मन का कुणा बटीक चिंगारी सी लगणी
जीकुडा मां चीर सी थगेणी
अब आखीयों मां भी रूणी पोणीगे
कब आला बौणी की।
गीत सी गाणुछौ तुमारी हर याद के
याद भी आणी लगी तुमारी हर बात में
ढेय पोर दीखणु हु्यूनाको घाम सी
कब आला बौणी की।
अफुथे अपणो के नी भुली
बार त्यौहार आन छे दीदी भुलि
तेरी संस्कृति भी आज तेथे खुजाणी लगी
कब आला बौणी की।
थाल कौतिक गीणया चुणीया
परदेश मा भी अपणा मुणीया मुणीया
कुणी भी अब खंगयार बणया
कब आला बौणी की।
!!~केदार सिंह ~!!
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