म्यार पहाडा


ओ दीदी वाे भुली हीटाे म्यार पहाडा
जख ठंडी हवा सर-सर, तर -तर पाडीक धारा।

काखडी मुंगरी, तुमड लटक्या हाेला असुजा का मैना
काम काज चली हाेनल ओर पसीडक धारा
         ओ दीदी..................... म्यार पहाडा।

ठंडी दीनाे टुपुल, बुबुक कनछुप सैडीयुक स्काबा
गुदण मुदण बीछीया हाेला उबरक पाला
      ओ दीदी....................... म्यार पहाडा।

पाटव भीय्याे पखाण जब हरी -भरी राला
बसन्त आली जब फुलाे मे फुलारा
ओ दीदी.......................... म्यार पहाडा।

बुती री धान झुगंरा वेक  विशवासला
कान लग्या ऊ सरग फे, कब बरखला ई साला
ओ दीदी............................. म्यार पहाडा।

चल भुली चढै याेला भेट पवाडा
उची धाराे मे बसी मातक दरबारा
ओ दीदी.......................... म्यार पहाडा।
       
                 ~केदार सिह~
शब्दार्थ

म्यार-हमारा
हीटाे-चलाे
जख-जहाँ
पाडीक-पानी
काखडी-खीरा
मुंगरी-भुटटा
तुमड-कदु
लटक्या-लटके हुऐ
टुपुल-टाेपी
कनछुप-एक प्रकार की टाेपी
गुदड-मुदड-बीस्तर
उबरक  पाला-एक प्रकार की मिट्टी व लकडी की छत
पाटव-खेत
भीय्याे पखाण-पहाड
बुती-बाेना
झुगंर-एक प्रकार का खादयान। ये लगभग बाजरे की तरह हाेता है
सरग-आसमान

0 Comments