पहाडी


वाे पहाडी एक दीन एेसा आयेगा
सर पे  हाथ धरे तु
जब काेडी के भाव पहाड  बीक जायेगा
तु देखते देखते रह जायेगा।

अपनी माँ की गाेद छाेड के
दूर बसने चला है।तु
बस चन्दं अश्क दे गया
अब ताे अजनबी हाे गया  तु।

तरसे गी तेरी औलाद
एक दीन पहाड देखने काे
चन्दं भर मिट्टी भी नही हाेगी
जब बैच देगा इस स्वर्ग काे।

इज्जत साैहरत नाम पा कर
कही मुझे भुल न जाना
फिर भी कह रही हूँ। रहे कही भी तु
पर साल मे एक बार पहाड जरुर आना।

                      ~केदार सिह~
































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