मयार गाै

मयार गाै मा देव राैनी 

मनखी छाेडी चली गी।

देवाे का थान भी बाट दीखीया
कुणीयाे भीतर झाड कुयाड जम गी।

हाेला त काेई दान दीवाना परहेरी बनया
अपण सत के निभाैने निभाैने ऊ भी चल गी।

चली त गई पर कभी मुडी के नी देखी
सेत्यु पाल्यु जेग हेरदा हेरदा जीवन बीत गी।

देवुक वास जख मनखी हाे
कीवडा देवुक खुल्या खुल्या रे गी।


केदार सिंह।

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