बुढैन दा की गाणी

ये कविता उन बुर्जुग लाेगाे के लिये है़़ िजनके काेई साथी न. संगी बचा है ़़ ओर वाे अपने दील काे क्या दिलासा दे रहे है ़़़जब उनका कष्ट काेई नही समझ पाता है...
दाेस्ताे हम भी ऊन्ही के stage पर जायेगे ़़ ताे बुर्जुगाे की सेवा करे .जिस से आपकाे आपके काम मे वृधि हाेगी !!

की लगऊ रे बुढैन दा की गाणी
खुदैणु च पराणी
हरची गई दगडी बाज बुरांश
यकुली पीणु रेगु छाेयुकु पाणी

गुवैर छाेरा कन काैतिक जाणा
रगंसीयाेणु म्यार प्राण भी
जन धार पार घाम अछिगे
उन अछलेणु छु मी भी

डीट भी मेरी अब कम हुवेगे
आँखियु मा जन हाैल सी लै गे
रग बगे जान्दू जब कुई नी हुनाे
फैडीयाे मा घुसक्याली खैलने रेगे

हे विधाता यु माैत कब आली
गमटेणु म्यार जीकुण भी
हाथ जाेणी दीनु हे!विधाता तुवेखणी
बिन मछाे पाणी किले छे रूवाणी

केदार सिंह!



0 Comments