हाेली


आई रे आई हाेली
रंगो की हम जाेली
संगम का ये त्योहार आया
बाेलाे मिठी बाेली।

छाेटा बडा कुछ नही
आज गुलाल मलना है
गीले सीखवाे काे भूल के
आज रगं मे रगंना है।

मार पिचकारी की धार से
आज तन काे भिगवाना है
मन की जाे कालिक है
रगाें से उसे पुतवाना है।

रगाें की ये बारिश
हर सुबह शाम रहे
ये पल यादगार हाे जाये
जैसे राधा श्याम रहे।   ~केदार सिह~

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